Monday 7 April 2014

मेरे अल्फाज़ उसके रंग चलते रहें संग संग I

मेरे जीवन में रंग भरने वाली मेरी हमसफ़र
 की  तुलिका से निकले ये कुछ बेशकीमती एहसासत 



 रुक -रुक कर दोड़े है जिन्दगी,
सवाल कई छोड़े है जिन्दगी I
   कंही  अमावस कि स्याह घनी रात है जिन्दगी ,
   कंही दुधिया चांदनी से सराबोर पूनम की रात हैजिन्दगी I
        कभी बिन माँ सी कल्पती है जिन्दगी,
        कभी  बूढों सी अड़े है जिन्दगी I
खुश हूँ तो खूब  खिलखिलाए है जिन्दगी ,
और रो दूँ तो बहुत रुलाये है जिन्दगी I            
          कंही हारते को दिलाशा है जिन्दगी ,
          कंही  जीतों का अनवरत शिलशिला है जिन्दगी I
                      कभी  रूठी -रूठी अनमनी सी लगे है जिन्दगी ,
                      कभी  फ़िदा -मेहेरबान सी लगे है जिन्दगी I
चंद क़दमों के फसलों को मीलों में बदले है जिन्दगी,
फिर फ़ासलों को पाटती मासूम सी  कोशिश है जिंदगी I
      कंही उखड्ती सांसो कि लड़ी लगे है जिन्दगी ,
      कंही असीम दुआओं की झड़ी लगे है जिन्दगी I
         कभी लगे ये भी कमबक्त जिन्दगी है जिन्दगी ,
         कभी लगे यही तो जिन्दगी है जिन्दगी I
         


2 comments: